मंगलवार 2 दिसंबर 2025 - 19:55
थोपे गए युद्ध में ईरान की जीत;कुरआन पर अमल का नतीजा है।हुज्जतुल इस्लाम डॉ. रजाई इस्फहानी

हौज़ा / हरम मुकद्दस हज़रत मासूमा स.ल. के खतीब ने कहा है कि ईरानी क़ौम ने आठ साल के और बारह दिन के दो थोपे गए युद्धों में जो सताबता दिखाई, वह कुरआन की आयतों पर अमल का नतीज़ा है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हरम मुकद्दस हज़रत मासूमा स.ल. के खतीब हुज्जतुल इस्लाम वाल मुस्लिमीन डॉ. रजाई इस्फहानी ने कहा है कि ईरानी क़ौम ने आठ साल के और बारह दिन के दो थोपे गए युद्धों में जो सताबता दिखाई, वह कुरआन की आयतों पर अमल का नतीज़ा है।

हुज्जतुल इस्लाम वाल मुस्लिमीन डॉ. रजाई इस्फहानी ने हरम मुकद्दस में आयोजित तिलावत ए फ़ातेमी नामक कार्यक्रम में संबोधित करते हुए सूरए फ़तह की आख़िरी आयतों की ओर इशारा करते हुए कहा कि कुरआन ने हमें तीन तरह की तिलावत की दावत दी है:

1. समझ के साथ तिलावत,
2. गहराई से सोच-विचार के साथ तरतील,
3. और अमल के साथ तिलावत।

कुरआन यह भी चाहता है कि हम इसकी आयतों में तफ़क्कुर, तअक्कुल और तदब्बुर करें।

उन्होंने विस्तार से बताते हुए कहा कि तफ़क्कुर यानी मुक़द्दमात पर ग़ौर, तअक्कुल यानी उसूल व क़वाइद का इस्तिख़राज, और तदब्बुर यानी नताइज व असरात को समझना।

हौज़ा और यूनिवर्सिटी के उस्ताद ने आयत «محمّد رسول‌ اللہ والذین معه أشدّاء علی الکفار رحماء بینهم» की तफ़सीर करते हुए कहा कि "कुफ़्फ़ार पर शिद्दत" का मतलब इस्लाम के मुहारिब दुश्मनों के मुक़ाबले में सख़्ती से पेश आना है, न कि सभी ग़ैर-मुस्लिमों के साथ सख़्ती करना। इसके उलट, रहमत व नर्मी का रवैया घर, समाज और पड़ोसियों के साथ अपनाया जाना चाहिए।

हुज्जतुल इस्लाम वाल मुस्लिमीन रजाई इस्फहानी ने कुरआनी उसूल-ए-जिहाद की वज़ाहत करते हुए कहा कि कुरआन ने मज़लूमों को बचाव का हक़ दिया है और मुसलमानों को दुश्मन के सामने सताबता की दावत दी है, जिसका नतीजा इलाही नुसरत और पाएदारी के तौर पर ज़ाहिर होता है।

उन्होंने मुआसिर तारीख़ के शवाहिद बयान करते हुए कहा कि ईरान ने बारह दिन के युद्ध में अमेरिका और इस्राईल जैसी दो परमाणु ताक़तों के मुक़ाबले में डटकर मुक़ाबला किया और दुनिया पर साबित किया कि दुश्मन ईरान की इल्मी व डिफ़ाई ताक़त से डरता है।

तारीख़-ए-ईरान की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि क़ाजार और पहलवी दौर में मुल्क अपनी सरज़मीन के कई हिस्से खो चुका था, लेकिन इंक़िलाब-ए-इस्लामी के बाद ईरान ने आठ साल के और बारह दिन के दोनों थोपे गए युद्धों में सताबता दिखाई और एक इंच भी अपनी सरज़मीन से दस्तबरदार नहीं हुआ।

आख़िर में उन्होंने इस कामयाबी को आयात-ए-कुरआनी पर अमल का नतीजा क़रार देते हुए कहा कि अगर हम अशिदा अलल कुफ़्फ़ार" और "रहमा बयनहुम" के कुरआनी उसूल को तफ़क्कुर, तअक्कुल और तदब्बुर के साथ अपनाएं तो नतीजा हमेशा कामयाबी, इज़्ज़त और सरबुलंदी के तौर पर सामने आएगा।

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